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अनुभूति में स्वदेश भारती की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अंत अनंत
कुछ टूटता है भीतर
जीवन वन
महारण्य
संबंध-छन्द

 

संबंध छंद

सहज नहीं होता संबंध
जैसे राग और छन्द
एक दूसरे के बिना
अस्तित्वहीन होते हैं
उसी तरह प्रेम और संबंध
एक के बिना अपना अर्थ खोते हैं
द्वन्द्व जहाँ प्रेम और संबंध का होता शत्रु
प्रेम ही सार्थक बनाता संबंध-आनंद
सहज नहीं होता संबंध....

जैसे कमल-कोरों में बंद
भौंरा भले ही रस-सिक्त जीवन का
अनूठा आनंद भोग ले
किन्तु बाहर न आ पाने से
स्वातंत्र्य का सुख नहीं जी पाता
जैसे पिंजड़े में बंद पंख फड़फड़ाता
पाखी चाहे जितना फल, फूल
अन्न जल खाए, सोए, बोले
तरह-तरह की मधुर भाषा
किन्तु आकाश-सुख बन जाता
उसके लिए असह हताशा
भोग नहीं पाता वह
जीवन का स्वतंत्र-सुख-निर्द्वन्द्व
सहज नहीं होता संबंध....

मुक्त आकाश जैसे हवा को
विभिन्न दिशाओं में
कई कई तरह से आन्दोलित करता है
प्रेम भी संबंध को
खालीपन से भरता है
प्रेम ही संबंध का होता
प्राणवन्त छन्द
उसी से होता जीवन झंकृत
आत्म विभोर-निरानन्द।

२ दिसंबर २०१३

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