अनुभूति में
सुशील गुप्ता की
रचनाएँ -
जीवन सूर्यमुखी
झूठ के पक्ष में
मैं हारूँगी नहीं
मेघ शिशु
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मेघ-शिशु
नन्हें-नन्हें छौने से मेघ-शिशु
शरारतन उतर आए
पर्वत-घाटियों के आँगन में
मचाने धमार!
आसमान गुस्से से गरज उठा,
सख़्त अनुशासन की लगाम कसे,
शंटी लगाई बार-बार! लगातार!
पिटे-सहमे मेघ-शिशु
धुनी हुई रूई-से धुआँ-धुआँ
उलटे पाँव,
लौट चले अपने घर,
क़तार-दर-क़तार।
१९ जनवरी २००९
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