जीवन...सूर्यमुखी
अंतस में सहेजे हुए,
अपना किया अनकिया
बहुरंगी अहसासों की संचयिता
टूटे-जुड़े नातों को
अर्पित है कृतज्ञता!
कितना कुछ जाना
कितना कुछ देखा,
फिर भी कितना कुछ छूट गया
अनजाना! अनदेखा!
विपुला इस धरती पर
आशीषों-सा झुका-झुका आसमान-
झरता है शिशिर,
बुलाती-सहलाती नदियाँ
चुनौती देते पहाड़, वन-प्रांतर
लहलहाते खेतों का संवाद,
छेड़छाड़ करतीं चंदनी हवाएँ
बोलती-बतियाती अछोर दिशाएँ
और इन सबसे बढ़कर,
यहाँ से वहाँ तक जुड़े अनंत सरोकार,
हज़ारहा दुःखों में भी बनाते हैं सुखी,
क्योंकि जीवन है सूर्यमुखी।
१९ जनवरी २००९