मैं हारूँगी नहीं
मैं हारूँगी नहीं!
बार-बार किया है संकल्प!
फिर भी हारी हूँ, हर बार!
लौट-लौटकर लेना पड़ा,
ज़िंदगी के उखड़े-पुखड़े खेमे में
मातमी निर्वासन!
सोच के समंदर पर
बिछी रही उदासी, नातमाम!
रिश्तों की खिड़की पर उतरती रही शाम।
अब मैं हूँ, अंधेरा है,
दुःखों की सुरंग में
उम्र-क़ैद की सज़ा झेलता, सबेरा है!
लेकिन, सारी टूट-फूट के बावजूद
टूटी नहीं उम्मीद!
किसी दिन यह अंधेरा ही लाएगा,
उगते सूरज के उजाले का सुराग़!
जब तक सीने में धड़कती है साँस
अनबुझ है मेरे अंतर की आग!
अक्षत है, मेरा संकल्प राग
मैं हारूँगी नहीं।
१९ जनवरी २००९