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अनुभूति में सुशील आज़ाद की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
नहीं लौट पाई वो
जिंदगी
दर्द
साँझ का सूरज
सूरज की बैसाखियाँ

 

सूरज की बैसाखियाँ

अपाहिज सूरज की बैसाखियाँ
टूटकर जर्जर हो जाती है
तब काली रश्मियाँ
मणिबंध होकर नाचने लगती है
चाँद की रहनुमाई का
भटकती चाँदनी की लहर पर
सवार हो जाती है
तब
कहीं चिल्लाता है सूरज
घटाओं में खोई
बैसाखियों की बिसात पर
तभी सहसा
अभिमन्यु की तरह लड़ता है
घनघोर घटाओं की अक्षोहिणी से
तभी सूरज के हृदय में उभरने लगता है---
महाभारत

३ अक्तूबर २०११

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