अनुभूति में
सुमन केशरी की रचनाएँ- छंदमुक्त में-
औरत
बा
बा और बापू
महारण्य में सीता
लोहे के पुतले
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बा
और बापू
चलते चलते आखिर थक ही गई
इशारे भर से रोक लिया उसे भी
उस ढलती शाम को
जो जाने कब से तो चल रहा था
प्रश्नों की कंटीली राह पर
नंगे पाँव
नियम तोड़ रुक गया वह
भीग गई आत्मा
लहलहाई
कोरों पर चमकी
यह जानते हुए भी कि
देह भर रुकी है उसकी
शय्या के पास
मन तो भटक ही रहा है
किरिच भरी राहों पर
उन प्रश्नों के समाधान ढूँढता
जो अब तक पूछे ही न गए थे...
२१ मई २०१२
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