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अनुभूति में स्वर्णलता ठन्ना की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
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उदास शाम
प्रतिमूर्ति
बदलाव
सूरज

 

सूरज

अलसाई अँखियों को
मलते हुए
सुबह-सवेरे बालारूण
पहन लेता है
उषा प्रदत्त सिन्दूरी झबला
दिवस को नापकर
साँझ तक पहुँचने की
उतावली में
करता है वह
प्रकृति की अभ्यर्थना
और जल्द ही
सिंदूरी रंग से बाहर निकल
पहन लेता है
उजली किरणों का कुर्ता
दिन भर की थकन लेकर
जब पहुँचता है सूर्य
साँझ के आँचल में
तब संध्या
धूमिल पड़ी किरणों का कुर्ता उतार
पहना देती है नया पहनावा
सांध्य वंदना करता सूर्य
लगा लेता है
क्षितिज तक लहराती
लहरों में लम्बी डुबकी
दिन भर की थकन और
ताप से झुलसे
अपने तन को
शीतलता देने के लिए
और उषा फिर से
व्यस्त हो जाती है
सिंदूरी झबले को बुनने में
संपूर्ण सृश्टि को
तेजोमय बनाने वाला सूर्य भी
कितना अधूरा है
उशा, संध्या और
किरण के बिना...।

२३ जून २०१४

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