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अनुभूति में स्वर्णलता ठन्ना की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
इकरार
उदास शाम
प्रतिमूर्ति
बदलाव
सूरज

 

प्रतिमूर्ति

वक्त के थपेड़ों ने
कितना निर्मम
बना दिया है मुझे
बड़ी बेदर्दी से
मैं अपने अरमानों का
गला घोंट देती हूँ

कितनी निर्मोही
हो गई हूँ कि
अपने सपनों के
पंख कतर
उन्हें पैरों तले रौंद
आगे बढ़ जाती हूँ

किसी परिस्थिति के हाथों
कमजोर न पड़ जाऊँ
इसलिए पलकों की
कोरों पर
आँसुओं को
झलकने भी नहीं देती

फिर भी
कहते सुना है
लोगो को कि
स्त्री, दया, ममता
और स्नेह की
प्रतिमूर्ति है...।

२३ जून २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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