अनुभूति में
स्वर्णलता ठन्ना की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
इकरार
उदास शाम
प्रतिमूर्ति
बदलाव
सूरज
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बदलाव
तय कर लिया है मैंने
बदलने हैं
जिंदगी के नक्ष
तह करके रख दी है
उदासी की चादर
फैला ली बाँहें
मुस्कानों का
स्वागत करने के लिए
पोंछ लिए गालों से अश्रु
ताकि वे
हँसी की गुलाबी
रंगत में रंग सकें
आँज लिया
आँखों में काजल
कि कहीं
दुख के स्याह घेरे
फिर से लौट आने की
कोशिश न करें
फैला ली है
हास की मादकता
अपने लबों पर
अब मैं
हर किसी को
दिखाई देती हूँ
हँसती, खिलखिलाती
मुस्काती
पर जब से
मैंने बदला है
अपने आप को
तब से
डरने लगी हूँ
कहीं पकड़ी न जाऊँ
किसी के हाथों
जो मुझसे कहें
कितनी
बनावटी हो तुम...।
२३ जून २०१४
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