अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शैली खत्री की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अगहनी धान
जिंदगी और मौत (तीन कविताएँ)
तुम बिन
प्रार्थना
मेरा छल

 

अगहनी धान

उगी है खेतों में अगहनी धान
झूमती हैं सुनहली बालियाँ
हवा के हर इशारे पर
देख दूर तक फैली
स्वर्णिम आभा को
ठहर जाता है हर पथिक
ठण्डी करना चाहता है आँखें
चखना चाहता है एक दाना
विहगों का दल भी आया है
झुण्ड के झुण्ड उतरते हैं
सारा दिन तिरकर
मिटा लेना चाहते हैं-भूख
मूषकों की बन आयी है
दिन रात ढो-ढो कर
भर रहे हैं घर
कर देना चाहते हैं-व्यवस्था
सात पुश्तों के खाने की
गाँव-टोले के बच्चे
आते हैं दबे पाँव
दो तीन करते हैं पहरेदारी
शेष हो जाते हैं रत
चौर्य कर्म में
पा किसी की टोह
हो जाते हैं नौ दो ग्यारह
कृषक भला क्या पीछे रहेंगे
तृप्त हो जाते हैं सूँघकर ही
देते धरना
दिन औ रात
इसकी मदमाती गंध से
हो गये हैं मस्त।

२६ जनवरी २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter