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अनुभूति में शील भूषण  की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अपना अपना सा
अब और नहीं
तड़पन
मेरा अपना सत्य
शून्य-सा जीवन

 

तड़पन

कल रात जब तुमने
मुझे
बाहों में लेने से इन्कार किया
तो बरबस मेरे मन ने
मुझ से एक छोटा सा इजहार किया
कि बन जा उर्मिला
और …..बसा ले
लक्ष्मण को अपनी साँसो में
हो जा लक्ष्मन्मयी
क्या रखा है इन बातों में
क्यूँ बनती है सीता
जो यह सोचे
कि ....मेरा हर पल
राम के संग क्यू न बीता
पल उर्मिला ने भी
लक्ष्मण के संग ही थे बिताये
रह कर लक्ष्मण से जुदा
नही थे उसने ये पल गवाँए
रोती, हँसती
गाती, मुस्कराती
हर पल थी वह भी
लक्ष्मण के ही संग बीताती
क्या भूल गयी तू
कि ..
तू यशोधरा भी है
जिस ने
गौतम को था बुद्ध बनाया
दे कर अपना राहुल भी दान मे उसे
कितना अद्भुत सुख था उसने पाया
जानती है तू
कि... नारी नही है केवल माया
नारी से जुदा हो कर नही
अपितु नारी के बल पर ही
नर ने इतना सब कुछ है पाया
पा लेने दे
तू भी वह सब
अपने लक्ष्मण को
बन कर उर्मिला और यशोधरा
त्यागमयी बना
अपनी इस तड़पन को

१६ जनवरी २०१२

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