अनुभूति में
शील भूषण
की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
अपना अपना सा
अब और नहीं
तड़पन
मेरा अपना सत्य
शून्य-सा जीवन |
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अब और नहीं
नहीं बस अब और नहीं
नहीं चल सकती मै अब और
तेरे संग -संग
कुछ दूर और मेरे मन
ये कहाँ ले आया तू मुझे
ये कैसा विचित्र उपवन
जहाँ पुष्प तो है लेकिन ...सब
गंध- हीन
ठीक... उन रिश्तों की तरह
जिनका...नाम तो है
सम्मान नहीं
वेदना तो है सम्वेदना नहीं
अनुभूति तो है सहानुभूति नहीं
नहीं ...
नहीं चाहे थे मैंने ऐसे रिश्ते
जो जब चाहें इस्तेमाल करें मुझे
एक रबर स्टाम्प की तरह
अपने निजी हितों के लिए
और फेंक दें उसके बाद एक कोने में
नहीं ....नहीं
ऐसी दुनिया तो नहीं थी मेरी
जहाँ पल -पल कड़वा घूंट पीना पड़े
मर -मर के जीना पड़े
१६ जनवरी
२०१२ |