कविता बन रही
उपहास जाग हे कवि प्रेम
की जग में जगा दे प्यास
कविता बन रही उपहास
दूर रवि से भी कभी जाता रहा
कवि
युद्ध में भी शांति पद गाता रहा कवि
आज दिल्ली तक पहुँचने की लगाए आस
कविता बन रही उपहास
नीति भ्रष्ट अशिष्ट छबि
मुखपृष्ठ पर है
व्यक्ति निष्ठा की प्रतिष्ठा कष्टकर है
सत्यनिष्ठ विशिष्ट को डाले न कोई घास
कविता बन रही उपहास
मुक्त छंद निबंध काव्य प्रबंध
सारे
हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे
हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास
कविता बन रही उपहास
पठन पाठन श्रवण चिंतन मनन
होगा
प्रसव पीड़ा जनित उत्तम सृजन होगा
करें सार्थक पारमार्थिक सतत अथक प्रयास
कविता बन रही उपहास
1 अगस्त 2006
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