देख प्रकृति की
ओर मन रे! देख प्रकृति
की ओर।
क्यों दिखती कुम्हलाई संध्या
क्यों उदास है भोर।
देख प्रकृति की ओर।
वायु प्रदूषित नभ मंडल दूषित
नदियों का पानी
क्यों विनाश आमंत्रित करता है मानव अभिमानी
अंतरिक्ष व्याकुल-सा दिखता बढ़ा अनर्गल शोर
देख प्रकृति की ओर।
कहाँ गए आरण्यक लिखने वाले
मुनि सन्यासी
जंगल में मंगल करते वे वन्यपशु वनवासी
वन्यपशु नगरों में भटके वन में डाकू चोर
देख प्रकृति की ओर।
निर्मल जल में औद्योगिक मल
बिल्कुल नहीं बहाएँ
हम सब अपने जन्मदिवस पर एक-एक पेड़ लगाएँ
पर्यावरण सुरक्षित करने पालें नियम कठोर
देख प्रकृति की ओर
जैसे स्वस्थ त्वचा से आवृत
रहे शरीर सुरक्षित
वैसे पर्यावरण सृष्टि में सब प्राणी संरक्षित
क्षिति जल पावक गगन वायु में रहे शांति चहुँ ओर
देख प्रकृति की ओर।
1 अगस्त 2006
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