अनुभूति में
शंभु चौधरी की
रचनाएँ -
छंद मुक्त में-
निःशब्द हो जलता रहा
मानव अधिकार
मैं भी स्वतंत्र हो पाता
श्रद्धांजलि
हम और वे
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निःशब्द हो जलता रहा
आज, अपने आपको खोजता रहा,
अपने आप में,
मीलों भटक चुका था, चारों तरफ घनघोर अंधेरा
सन्नाटे के बीच एक अजीब-सी, तड़फन ,
जो आस-पास,
भटक-सी गई थी।
शून्य! शून्य! और शून्य!
सिर्फ़ एक प्राण,
जो निःसंकोच, निस्वार्थ रहता था,
हर पल साथ
पर मैंने कभी उसकी परवाह न की,
अचानक उसकी ज़रूरत ने,
सबको चौंका दिया।
चौंका दिया था मुझको भी,
पर! अब वह
बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर...
और मैं जलता रहा निःशब्द हो आज
१७ नवंबर २००८
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