अनुभूति में
सुनीतिचंद्र मिश्र की रचनाएँ-
तीन होली गीत-
एक होली और
बसंत
होली
अन्य रचनाओं में-
बोधिवृक्ष
तुम
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तुम
कभी तुम मौन रहती हो,
कभी तुम कुछ नहीं कहती
कभी तुम शब्द की सुन्दर
नदी-सी हो बहा करती.
कभी तुम प्यार की कविता,
कभी नि:शब्द बन जाती
कभी दर्शन नहीं होते
कभी तुम स्वप्न में आती.
कभी तुम फूल बनती हो,
कभी पतझाड़ जीवन की
कभी तुम भूल बनती हो,
कभी झंकार जीवन की.
कभी तुम पास आकर भी
कहीं से लौट जाती हो
न जाने किस अगम गिरि-श्रंृृृग
से तुम फिर बुलाती हो.
कभी निस्तब्धता के लोक में
रूठी हुई सी तुम
किसी रोमांस कविता की
कड़ी छूटी हुई सी तुम.
कभी तुम प्यार के संसार
की मनुहार मेरी हो
कभी तुम उर्वशी-सी
स्वर्ग से अवतार मेरी हो.
कभी तुम फिर वही
अव्यक्त गीतों में समा जाती
किसी धूमिल सितारे-सी
कहीं से झिलमिला जाती.
मिलन की प्यास भी हो तुम,
अनिश्चय की कुहासा हो
जिसे मैं छू नहीं सकता
वही दुर्लब्ध आशा हो.
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