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अनुभूति में सुनीतिचंद्र मिश्र की रचनाएँ-

तीन होली गीत-
एक होली और
बसंत
होली

अन्य रचनाओं में-
बोधिवृक्ष
तुम
 


 

 

होली

कोमल सपने टूट गए हैं,
कुछ अपने थे छूट गए हैं,
भीतर कोई आग धधकती,
हम हंसते हैं - `होली है!'
मधुऋतु मधु-उल्लास भरे है,
क्यों विषण्ण, भग्नाश, अरे! है?
जब प्रफुल्ल विश्वानन, तू भी
राग मिला दे - `होली है!'
अपने आंसू ढार, बटोही!
अर्घ्य चढ़ा दे कलियों को ही
बिछल गिरेंगे ओस द्रुमों पर,
झूम कहेंगे - `होली है!'
सागर बड़वानल पर गिरता,
तारक छिपते, बादल घिरता
व्यक्ति-शोक पर विश्व-हास का
दंभ मचलता - `होली है!'
होली है तो तुम भी नाचो,
आत्मकथा लपटों पर बांचो
अन्तर्जग में आग लगाकर
रस बरसा दो - `होली है!'

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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