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एक होली और

एक होली और आने जा रही है
क्या पता क्या रंग लाने जा रही है!
एक होली थी, कभी जब गांव में था
धूलिमा की श्रांत, कोमल छांव में था
मौन थे सपने, न कोई कामना थी
थी वही मंज़िल कि मैं जिस ठांव में था
जब कभी होली पहंुचती गांव मेरे
किस खुशी से थे थिरकते पांव मेरे!
क्या वही बचपन जगाने आ रही है?
एक होली और आने जा रही है।
आज भी होली वही उत्साह वाली
रंग वाली जिंद़गी की चाह वाली
पर सयाना हो गया है मन हमारा
चेतना निर्मल नहीं, अब दाह वाली
जब तरंगित हो उठेगा मन हमारा
सज उठेगा रंग से जीवन हमारा
हर खुशी मन के बहाने आ रही है
एक होली और आने जा रही है।

९ मार्च २००६

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