याद करूँगा
जीने के लिए
जब भी प्रयास करूँगा
मैं तुम्हारी
यादों को याद करूँगा
आँखो ने सपने देखे थे
तुम्हें पाकर
होठ
मुस्काए थे
तुम्हें अपनाकर
अवसर दे
जब भी वक्त मुझे यह-
बार-बार यही अपराध करूँगा
जीने के लिए
जब भी...
जब-जब
तेरे वायदे
याद दिलाते
तेरी काया
फैल जाती हो तुम
खुशबू बनकर
यहाँ नहीं,
वहाँ नहीं,
कहाँ नहीं
जाती हो तुम
मेरे संग
आँसू बनकर
फिर भी
मिले यही अवसर-
खुदा से यही फरियाद करूँगा,
जीने के लिए
जब भी...
रोना-हँसना, लड़ना-झगड़ना
बन कर आज
बरगद की छाँव
देती है मुझे
एक सुखद ठाँव।
सुख का यह क्षण
लिए आ जाती हो
जब तुम दबे पाँव
बहुत पास लगता है
तुम्हारी यादों का गाँव।
ऐसे ही
आती रहो तुम
मेरे मन मस्तिष्क में
अविरल-अविराम।
कसम तुम्हारी
मरते दम तक
मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा,
जीने के लिए
जब भी...
२२ मार्च २०१० |