छंदमुक्त में- चुपके से झूठ याद याद करूँगा स्मृतियाँ
जी भर के निहारा सराहा खूब मेरी सीरत को छुआ, सहलाया और पुचकारा मेरे सपनों को जब मैं डूब गया तुम्हारे दिखाये सपनों के सागर में मदहोशी की हद तक तब अचानक! तुम्हारा दावा है तुमने नहीं दिखाये सपने क्या तुम बोल सकती हो कोई इससे बड़ा झूठ?
२२ मार्च २०१०
इस रचना पर अपने विचार लिखें दूसरों के विचार पढ़ें
अंजुमन। उपहार। काव्य चर्चा। काव्य संगम। किशोर कोना। गौरव ग्राम। गौरवग्रंथ। दोहे। रचनाएँ भेजें नई हवा। पाठकनामा। पुराने अंक। संकलन। हाइकु। हास्य व्यंग्य। क्षणिकाएँ। दिशांतर। समस्यापूर्ति
© सर्वाधिकार सुरक्षित अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है