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स्मृतियाँ
तुम्हारे संग
कभी घंटों चुपचाप बैठकर
तो कभी घंटों बातें करके
सहज हो जाता था मैं
और जब तुम हँसती थी
तब खिल उठते थे
मेरे दिल के बाग में
हजार-हजार गुलाब एक साथ
तुमसे दूर हो कर
ये स्मृतियाँ शेष रह गई हैं
मेरे पास
तुम्हारी धरोहर बनकर
तुम्हारा
वो साथ बैठना
बातें करना,
रोना, हँसना
रूठना, मनाना
हर पल, हर क्षण
मुझे आभास कराता है
आज भी
तुम्हारे पास होने का
इसीलिए
बड़े जतन से सँभाला है मैंने
तुम्हारी इस धरोहर को
क्योंकि
इससे मिलते ही
मन आनंदित हो जाता है
उमंग-उत्साह के रंग में
मैं सराबोर हो जाता हूँ
पल भर के लिए
जीवन मेला-सा बन जाता है
और मैं
एकबारगी
फिर से
सहज हो जाता हूँ
उसी तरह
जिस तरह
कभी तुमसे मिल कर होता था।
२२ मार्च २०१० |