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अनुभूति में आर पी शुक्ल की रचनाएँ-

छंद मुक्त में-
किराये के कंधे
पाँव के निशाँ
प्रतीक्षा के तीन युग

अंजुमन में-
अपनी किस्मत
छोड़कर गाँव

हाइकु में-
दस हाइकु

 

दस हाइकु

मैं जानता हूँ
सुमेरु पर्वत है
मानता नहीं।

भीतर तो है,
टूटन-बिखरन,
माथे चंदन।

चाहूँ हूँ तुझे,
गाँव की माटी क्योंकि,
जानूँ हूँ तुझे।

वह रोकता
तो रुक भी जाता मैं
रोकता तो वो

और कौन है
दुश्मन मेरा, दोस्त
मैं ही खुद हूँ।

लौटेगा जब,
खून से लथपथ,
माथा चूमूँगा।

वह रोकता,
तो रुक भी जाता मैं,
उसके लिए।

हिरन दौड़ा
मरिचिका के पीछे
तो पानी हँसा।

माता गाँव में
बेटा है शहर में
रिश्ता फ़ोन में।

ख़ुदा है तो आ
मेरी मदद कर
वरना बुत है।

९ नवंबर २००९

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