अनुभूति में
ऋचा अग्रवाल की रचनाएँ-
छंद मुक्त में-
उम्मीद की रोशनी तुम
बातें
वो बारिश की बूँदें
शब्द
स्त्री |
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शब्द
कभी नहीं होती इन्हे किसी के सहारे की जरूरत
और ये कभी अनुभूति का
तो कभी मर्यादा का आवरण ओढ़े
होठों और जीभ के बीच में ही
सिकुड़ जाया करते हैं
और कभी जब मन पर पड़ी चोटें
आँसू बनकर बहने लगती हैं
तब ये शब्द धीरे धीरे बन जाते हैं
एक कड़क आवाज़
और खामोशी से भी ज्यादा चुभने लगते हैं।
१ अप्रैल २०२१
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