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अनुभूति में रेखा कल्प की रचनाएँ

तुतलाता बचपन
बुझा न देना दीप प्राण का
मेघा बरस बरस अंबर से
सौ-सौ नमन

 

 

तुतलाता बचपन

जीवन के बीहड़ कानन में
कहीं खो गया मेरा बचपन।
पल-पल गाता निश्छल हँसता
मलय-वात-सा मेरा बचपन।।

ढूँढ़ू पल्लव की मृदुता में
बिरवों की नवकोमलता में,
हार-सिंगार की कलियों में
महका-महका सुंदर बचपन।
कहीं खो गया मेरा बचपन।।

ढूँढूँ, उषा की वेला में
झर-झर-झर झरते निर्झर में,
अस्फुट वाणी के शब्दों में
किलकाता तुतलाता बचपन।
कहीं खो गया मेरा बचपन।।

ढूँढूँ सीपी के मेले में
रंग-बिरंगे पाषाण-कणों में,
रेत के नम घरौंदे में
क्षण में लड़ता, क्षण में मिलता,
नित अभिनव-सा पुलकित बचपन।
कहीं खो गया मेरा बचपन।।

16 मार्च 2007

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