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अनुभूति में रेखा कल्प की रचनाएँ

तुतलाता बचपन
बुझा न देना दीप प्राण का
मेघा बरस बरस अंबर से
सौ-सौ नमन

 

 

सौ-सौ नमन

खिल उठे आज सुधियों के ताज़े सुमन।
कर रही हूँ शहीदों को सौ-सौ नमन।।

रोशनी को चले पर अँधेरे मिले।
चुप है किसलिए ये सारा वतन।।

हर जगह उठ रहा है धुआँ ही धुआँ।
ज़िंदगी सोई है ओढ़कर क्यों कफ़न।।

धर्म जाति ही अब सब बड़े हो गए।
आदमियत का कुछ भी नहीं चलन।।

ज्वार-भाटे में बस गम उफनते रहे।
शंख-सीपी की क्यों न लगी है लगन।।

उल्काओं से बचा लो अब ये धरा,
टूटकर गिर न जाए कहीं ये गगन।।

स्वार्थ-नफ़रत की आँधी चली अब तलक।
प्रेम की गंध से क्यों न भर दो चमन।।

गुनगुनी धूप में पाटलें दूरियाँ।
हर ऋतु का सुहाना हो आवागमन।।

जिसमें औरों को घर भी दमकने लगे।
आओ 'रेखा' करें आज ऐसा हवन।।

16 मार्च 2007

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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