सौ-सौ नमन
खिल उठे आज सुधियों के ताज़े सुमन।
कर रही हूँ शहीदों को सौ-सौ नमन।।
रोशनी को चले पर अँधेरे मिले।
चुप है किसलिए ये सारा वतन।।
हर जगह उठ रहा है धुआँ ही धुआँ।
ज़िंदगी सोई है ओढ़कर क्यों कफ़न।।
धर्म जाति ही अब सब बड़े हो गए।
आदमियत का कुछ भी नहीं चलन।।
ज्वार-भाटे में बस गम उफनते रहे।
शंख-सीपी की क्यों न लगी है लगन।।
उल्काओं से बचा लो अब ये धरा,
टूटकर गिर न जाए कहीं ये गगन।।
स्वार्थ-नफ़रत की आँधी चली अब तलक।
प्रेम की गंध से क्यों न भर दो चमन।।
गुनगुनी धूप में पाटलें दूरियाँ।
हर ऋतु का सुहाना हो आवागमन।।
जिसमें औरों को घर भी दमकने लगे।
आओ 'रेखा' करें आज ऐसा हवन।।
16 मार्च 2007
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