अनुभूति में
रेखा कल्प की रचनाएँ
तुतलाता बचपन
बुझा न देना दीप प्राण का
मेघा बरस बरस अंबर से
सौ-सौ नमन
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बुझा न देना दीप
प्राण का
उजियारे की एक किरण को,
जगमग-जगमग जलूँ रातभर।
बुझा न देना दीप प्राण का,
अँधियारा पथ हो जाएगा।।
कसक पीर की उठती रही,
आस प्यास बन पलती रही।
श्वासों की सूनी राह पर,
किरण भोर की छलती रही।
रह न जाए पिकी कूकती,
गगन तिमिरमय हो जाएगा।
बुझा न देना दीप प्राण का,
अँधियारा पथ हो जाएगा।।
कजरारे मेघों से क्यों? तुम,
मौन निमंत्रण दे जाते हो।
धवल चाँदनी के आँगन में,
बनकर हास बिखर जाते हो।
करो न आँख मिचौनी प्रियतम,
अवसान दिवस का हो जाएगा।
बुझा न देना दीप प्राण का,
अँधियारा पथ हो जाएगा।।
मैं आली रजनी के तम में,
लड़ी अश्रु की रही पिरौती।
स्वयं भावना की मूरत को,
अँजुरी-अँजुरी रही भिगोती।
तुमने मूँदी मीत पलक जो
स्वर गीतों का खो जाएगा।
बुझा न देना दीप प्राण का
अँधियारा पथ हो जाएगा।।
16 मार्च 2007
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