अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राजेन्द्र चौधरी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आधार
पुनरावृत्ति
लोरियाँ कविताओं में

मुक्तक में-
मुक्तक
कुछ मुक्तक और

अंजुमन में-
अपनों के हाथों
कैकेयी की

 

लोरियाँ कविताओं में

मेरी कविताएँ पढ, सुन कर जमाना यह समझता है,
कि मेरे दिल को मुहब्बत के तरानों से ही नफरत है।
मेरा हर शब्द उनको आग का शोला सा दिखता है,
मैं तपती रेत हूँ, बरसात की बूँदों से नफरत है।
जिसे हासिल नहीं होती मुहब्बत की नरम जुम्बिश,
वो मुझको एक ऐसा ही अभागा मान बैठे हैं।
जिसे ऊँची उड़ानें काट देना रास आता है,
अजब ऐंठन भरा धागा मुझे वो मान बैठे हैं।
मेरे पहलू में भी दिल है, मेरे दिल में भी धडकन है,
मैं कुदरत का पुजारी हूँ, प्रकृति का प्रशंसक हूँ।
मुझे भी प्यार प्यारा है, मैं मुहब्बत का समर्थक हूँ।
मगर जब देखता हूँ चटकी कलियों के नसीबों को,
सच्चाइयों की राह में उठते सलीबों का।
मुहब्बत की आड़ में जिस्मानी रिश्तों को,
अँधेरे बाँटने में व्यस्त उजले इन फरिश्तों को।
बदन को छीलती और चीरती भूखी निगाहों को,
सम्पन्नता के दर्प को, विवश निर्धन की आहों को।
इन्सानियत के खंडहरों में देवता की भीड़ को,
रक्षकों के हाथ से लुटते हुए हर नीड़ को।
तब उपलब्धियाँ संवेदना की लाश लगती हैं।
मुहब्बत की निगाहें उस घडी अय्याश लगती हैं।
फिर लाख चाहूँ प्यार का रंग दिख नहीं पाता।
मैं लोरियाँ कविताओं में फिर लिख नहीं पाता।
मैं लोरियाँ कविताओं में यूँ लिख नहीं पाता।

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter