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अनुभूति में राजेंद्र "अविरल" की
रचनाएँ -

गीतों में—
सृजन स्वप्न

हास्य-व्यंग्य—
नेता पुत्र की अभिलाषा

कविताओं में—
पिता
बाबा
बिटिया पतंग उड़ा रही है
मैं जनता हूँ
हे ईश्वर

 

पिता

जब जन्म लिया था मैंने
खोए थे, जीवन के झंझावातों में तुम।

जब उठाया बाहों में तुमने मुझे
सुंदर भविष्य के लिए मेरे,
कठोरतम श्रम का
व्रत ले रहे थे तुम।

मेरे पाठशाला में जाने के,
पहले, तुम ही तो,
दौड़ पड़े थे लेने
स्लेट पेंसिल मेरी।

तंग करने पर, सहपाठियों को
समझाया था तुमने,
ऐसे और भी लोग मिलेंगे
और कैसे निपटना होगा, मुझे उनसे।

बड़ा होते ही दोस्त बन चुके थे।
तुम भी मेरे,
समझाते दुनिया की ऊँच-नीच
धूप-छाँव, खुशी गम..

असफलता पर मेरी,
दिलाया विश्वास तुमने कि
सफलता की राह में,
मिल जाती है, यह भी परखने को हमें।

मौन होकर भी,
सब कुछ कह जाते थे तुम
कैसे चुका पाऊँगा,
तुम्हारे अनंत उपकारों का कर्ज़

कठोरता के आवरण में लिपटे
कोमलता का अहसास कराते,
तुम्हारे शब्द आज भी,
भटकने पर राह दिखा जाते हैं मुझे।

आज बन कर एक बालक का पिता,
महसूस कर रहा हूँ,
उन परिस्थितियों को,
जिनमें तुमने मेरा निर्माण किया।

पोते से बतियाते देख तुम्हें,
मैं भी सुन लेता हूँ,
छुप-छुप कर तुम्हारी संघर्ष गाथाएँ,
और भीग जाती हैं पलकें मेरी।

पिता मैं धन्य हूँ, तुम्हें पा कर
उऋण नहीं हो सकता कभी तुमसे,
भूमि जैसी माँ में जड़ें मज़बूत हैं मेरी तो,
तुम आकाश हो, धूप हो, कवच हो मेरा

पिता मैं धन्य हूँ. . .

24 सितंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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