अनुभूति में राजेंद्र "अविरल"
की
रचनाएँ -
गीतों में—
सृजन स्वप्न
हास्य-व्यंग्य—
नेता पुत्र की अभिलाषा
कविताओं में—
पिता
बाबा
बिटिया पतंग उड़ा रही है
मैं जनता हूँ
हे ईश्वर
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मैं जनता हूँ
मैं जनता हूँ. . .
मुझे नहीं पता,
क्या है, लोक तंत्र?
क्या है, तंत्र-मंत्र?
क्या होता है, अनाचार?
क्या होता है, भ्रष्टाचार?
मुझे नहीं पता,
क्योंकि. . .
मैं जनता हूँ. . .
कैसे होते है, नेता?
कैसे होते थे, प्रणेता?
कैसी होती है, सरकार?
कैसे होते हैं, अत्याचार?
मुझे नहीं पता,
क्योंकि. . .
मैं जनता हूँ. . .
कहाँ होते हैं, दल?
कैसा होता है, दलदल?
कहाँ होता है, धरातल?
कैसा होता है, रसातल?
मुझे नहीं पता,
क्योंकि. . .
मैं जनता हूँ. . .
कैसे बनती हैं सड़कें?
क्यों होते हैं गड्ढ़े?
कैसे होती है, मरम्मत?
कैसे होती है, हजामत?
मुझे नहीं पता,
क्योंकि. . .
मैं जनता हूँ. . .
क्या होती है रिश्वत?
कैसे होते है टेंडर?
क्या होता है कमीशन?
कैसा होता है सिस्टम?
मुझे नहीं पता,
क्योंकि. . .
मैं जनता हूँ. . .
क्या होता है दान?
कैसी होती है दक्षिणा?
कैसी होती है भक्ति?
कैसे मिलती है, मुक्ति?
सच. . .मुझे कुछ नहीं पता. . .?
क्योंकि. . .
मैं जनता हूँ. . .
24 नवंबर 2007
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