अनुभूति में
राजर्षि
अरुण की रचनाएँ
जानना चाहता हूँ
तुम भी क्या करो
तुम्हारे जाने के बाद
नारी पत्ती जैसी
होती होगी
मेरा कनकौआ
सपने में और बाहर
तुम
समय की पीड़ा |
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तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे जाने के बाद
पूरे घर को स्वच्छ किया गया
तुम्हें प्रेम करने वालों ने ही
कचरे की तरह
तुम्हारी यादों को भी
घर के बाहर कर दिया
आख़िर क्या मजबूरी रही होगी
इतनी भी अधिक सफ़ाई की
अच्छाई भी बेचैन कर सकती है
16 मार्च 2007
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