अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राजर्षि अरुण की रचनाएँ

जानना चाहता हूँ
तुम भी क्या करो
तुम्हारे जाने के बाद
नारी पत्ती जैसी होती होगी
मेरा कनकौआ
सपने में और बाहर तुम
समय की पीड़ा

 

मेरा कनकौआ

1

सोचा था
बचाएगा मेरी फ़सल
रातदिन
जंगली व पालतू जानवरों से
मेरा कनकौआ
बडा विश्वास था मुझे उस पर
निश्चिंत होकर सोना चाहता था मैं
उस पर भरोसा करके

फ़सल की तबाही देख
जब एक दिन पूछा मैंने उससे
पहले तो उसने अपनी अभिज्ञता बताई
फिर मुस्कुराया
और अपनी चिंता जताई
रात-दिन खड़ा होने के लिए
क्या मिलता है उसे
सो कालांतर में
हाथ मिला लिए उसने
फ़सल के दुश्मनों से
उन दुश्मनों से
जिनसे फ़सल की रक्षा का भार
उसके कंधों पर था

मैं रुआँसा हो गया
इसलिए नहीं कि मेरी फ़सल तबाह हो गई थी
इसलिए कि फ़सल के ठीकठाक घर आ जाने पर
मैं कनकौआ को भी घर ले आना चाहता था
ससम्मान उसे अपने घर की अटारी/मुंडेर पर
स्थापित कर देना चाहता था
पर अब?

2

मुझसे पूछे बिना ही एक दिन
मेरे कनकौए ने
अपने बेटे को भी
खेत में बुला लिया
मुझे लगा
अब फ़सल की रक्षा
और भी अच्छी तरह से होगी
नई पीढ़ी का भी योगदान होगा

फ़सल के दुश्मनों से
फ़सल की रक्षा तो उसने कर ही ली
एक दिन
मुझे भी खेत पर से भगा दिया

16 मार्च 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter