अनुभूति में
डॉ. राजेश कुमार की रचनाएँ-
एक लहर
बीज
तुम्हारे लिए
तुम्हारा आना
मेरे शब्दों की सीमा |
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एक लहर
एक लहर उछली
भागी दौड़ी
लपकी झपटी
मुझे छूकर लौट गई!
क्यों आई थी वह?
लौटी वह
वेगवती
उमगाकर बलखाती
मुझे भिगोने
खींच लिए
पैर मैंने।
झिझकी
पर कब मानी
अभिमानी
फेनमयी
लहराकर आई
भिगो गई।
सँभला मैं
दूर हुआ
उसकी जद से
शंकित-चिंतित।
वर्षों पहले
एक लहर से भीगा था मैं
शापित हूँ
प्रत्यावर्तन की
जलती रेत पर।
पूर्ण वेग से
क्षमता को लांघ
आई इस बीच वह
भिगो गई भीतर तक
ले गई पैरों तले की रेत!
९ जून २००६
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