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अनुभूति में डॉ. राजेश कुमार की रचनाएँ-

एक लहर
बीज
तुम्हारे लिए
तुम्हारा आना
मेरे शब्दों की सीमा

 

बीज

ये बीज कैसा है
कभी चुकता ही नहीं
जहाँ फेंक दो
उग आता है
बंजर को चमनिस्तान बना देता है।

सुखा दो, सड़ा दो
दूर कर दो नज़रों से
प्राण चूस लो इसके
फिर भी जम जाता है
नई-नई कोंपलों से खड़ा मुस्काता है।

खाद की चिंता है न
पानी की चाहत है
मिट्टी हो कैसी भी
धूप हो कि छाया हो
जीवन के ध्वज जैसा खड़ा हो जाता है।

उसका है बीज यह
हिम्मत की खाद है
आस्था ज़मीन बनी
लगन की ऊष्मा है
ईमान की जिजीविषा से जीवन-धन पाता है।

९ जून २००६

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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