बीज
ये बीज कैसा है
कभी चुकता ही नहीं
जहाँ फेंक दो
उग आता है
बंजर को चमनिस्तान बना देता है।
सुखा दो, सड़ा दो
दूर कर दो नज़रों से
प्राण चूस लो इसके
फिर भी जम जाता है
नई-नई कोंपलों से खड़ा मुस्काता है।
खाद की चिंता है न
पानी की चाहत है
मिट्टी हो कैसी भी
धूप हो कि छाया हो
जीवन के ध्वज जैसा खड़ा हो जाता है।
उसका है बीज यह
हिम्मत की खाद है
आस्था ज़मीन बनी
लगन की ऊष्मा है
ईमान की जिजीविषा से जीवन-धन पाता है।
९ जून २००६
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