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जीवन की किताब
मेरे जीवन की किताब से जाने कब
प्यार का पन्ना फट कर निकल गया था
जब से होश सँभाला
उसे तलाशता रहा यहाँ वहाँ
भटकता रहा उसकी खोज में गलियों और कूचों में
ढूँढ़ता रहा उसे विभिन्न आकृतियों में
बौराया फिरता रहा हर पल
पर वह नही मिला
मैं हार बैठा
समझा लिया मन को
फिर एक दिन
कुछ जानी पहचानी शक्लों वाले
शब्दों ने आवाज़ दी
पास गया तो पाया कि
ये मेरे ही गुम हुए पन्ने के शब्द हैं
मैं एक पल खुश हुआ, बहुत खुश
दूसरे पल उदास हो गया
वह पन्ना अब एक किताब बन चुका था
कैसे जोड़ पाऊँगा उसे फिर
अपने जीवन की किताब से?
२ फरवरी २००९ |