अनुभूति में
निशा कोठारी की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कैद
प्रेम त्रिकोण
फतेह
मौन अभिव्यक्ति
त्रासदी
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त्रासदी
बड़ा ही अभेद्य रिश्ता था
हमारे बीच
कितना ख़याल रखती थी मैं तुम्हारा
तुम्हारी हर जरूरत
मुझसे
बस मुझसे ही पूर्ण होती थी
बिलकुल सहर्ष
तुम भी तो
कितना समझते थे मुझे
मेरी ज़रा सी भंगिमा बदलते ही
त्वरित भान हो जाता था तुम्हें
और
तुम तदनरूप
संपादित कर लेते थे स्वयं को
कितना मनभावन था सब कुछ
बस मैं और तुम
एक दुसरे को देखते सुनते समझते
संभाले चल रहे थे पूरी सृष्टि का संतुलन
आखिर एक दुसरे के बिना
हमारा कोई अस्तित्व भी तो नहीं
अचानक
जाने कहाँ से ये कमबख्त
कृत्रिमता आ गयी हमारे बीच
और इसने नष्ट कर दिए
हमारे सारे समीकरण
साथ में आधुनिकता मशीनीकरण
जैसे अन्य कई कीटाणु भी लायी थी
और सबने मिलकर
रचे हमारे बीच
भूम्पक, बाढ़ अकाल जैसे अनगिनत साजिशों के जाल
हर त्रासदी के पहले
मैंने कातर नज़रों से ताका
तुम्हारी ओर
पर तुम्हारी आँखें बंद थीं
मैंने कई बार इशारे किये
पर तुमने अनदेखी की
काश ये खलनायक न आते हमारे बीच
तो आज भी
हम ...
खुशी-खुशी साथ रह रहे होते
बिना क्षति पहुँचाए एक दूजे को
काश तुमने यों
अपनी भाषा न बदली होती।
१५ सितंबर २०१५
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