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अनुभूति में निशा कोठारी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कैद
प्रेम त्रिकोण
फतेह
मौन अभिव्यक्ति
त्रासदी

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कैद

कैद में पड़ी
एक चुलबुली चहकती
चिड़िया
बेचैन कर गयी मुझे
इसे भी तो उड़ना होगा
नापना होगा आसमान
छूनी होंगी बुलंदियाँ
हसरतों की!
कितनी पीड़ा होती होगी
जब उड़ने की हर कोशिश
दीवारों से टकराने का
दर्द देती होंगी
कितनी घुटन होती होगी
जब साँस लेने को
हवा भी कम पड़ती होगी
कितनी उदास होती होगी
जब साथियों को
उन्मुक्त गगन में
उड़ते देखती होंगी
न जाने क्या क्या सोचकर
खोल दिया मैंने दरवाज़ा
कर दिया मुक्त उसे
काट दीं बेड़ियाँ पराधीनता की
पर ये क्या
नहीं फैलाए पंख उसने
न की कोशिश उड़ने की
न छोड़ सकी उन सलाखों को
शायद
उसे आदत पड़ गयी थी
उस क़ैद की
शायद
उसने स्वीकार लिया था
वह बंधन
शायद
उसे प्यार हो गया था
उस चमकीले पिंजरे से!

१५ सितंबर २०१५

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