अनुभूति में
निशा कोठारी की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कैद
प्रेम त्रिकोण
फतेह
मौन अभिव्यक्ति
त्रासदी
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प्रेम त्रिकोण
धरती सूरज चाँद का
बड़ा अद्भुत प्रेम त्रिकोण
कैसे कहे धरती
कौन है ख़ास, कौन गौण
कैसे करे चयन
एक प्रियतम का
कैसे बाँटे नेह
अपने अंतर्मन का
दोनों से बँधा है
ह्रदय का भाव
कैसे तय करे
चयन का पड़ाव
दोनों ही प्रिय हैं उसे
दोनों की है चाह
पर वक़्त का तकाजा
चुननी होगी एक राह
आखिरकार सूर्य का
कर लिया वरण
चाँद के लोभ का भी
कहाँ कर पाई संवरण
शाम के धुँधलके पर
डाल रात की काली चादर
चली गयी चाँद से मिलने
ओढ़कर तारों की चुनर
बस इसी कशमकश में
घूमती रही धरती
अपनी ही धूरी पर
दोनों के बीच
और हमारे लिए
बड़ी कुशलता से
रात दिन की
रेखा दी खींच!
१५ सितंबर २०१५
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