अनुभूति में
निर्मला गर्ग की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
चाँदनी चौक
जिंदगी का नमक
धन्यवाद से कुछ ज्यादा
पृथ्वी खोलती है पुराना अलबम
मैं छोटी बढ़ई |
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चाँदनी चौक
खुली जगह के बँगलों में अक्सर अजनबियत
घर बसा लेती है
कभी ज़्यादा दबाब महसूस करें तो निकल आएँ
चाँदनी चौक की तरफ़
वहाँ आपको दिलचस्प नज़ारे मिल सकते हैं
टाटा-सूमो हथठेले से भिड़ी होगी
एक बहुत मोटा आदमी गोलगप्पे खा रहा होगा
उसकी जनेऊ की तसवीर एक विदेशी महिला
उतार रही होगी
ट्रैफिक जाम का आलम यह होगा
आपको अचानक ढेर सारी फ़ुर्सत मिल जाएगी
भूले-बिसरे फ़लसफ़े याद आएँगे
यह फुर्सत उस फुर्सत से अलग होगी जो आप
निर्जन बँगले में इस कमरे से उस कमरे
टहलकर बिताया करते हैं
आप यहाँ पराँठों वाली गली में पराँठे खा सकते हैं
तत्पश्चात रबड़ी का दोना कोने वाली दूकान से
(बहुत दिनों बाद स्वाद और तृप्ति से
आपका परिचय होगा
बहुत दिनों बाद उच्च रक्तचाप मधुमेह और डॉक्टरों की हिदायतें
आप भूल जाएँगें)
बनवाएँ फिर ठाठ से पान के बीड़े
पान की दूकानों पर अब भी आपको लोग
दोस्तों के हालचाल पूछते मिल सकते हैं
एक-दूसरे के लिए संदेश छोड़ते दिख सकते हैं
गलियों नुक्कड़ों दूकानों में घूमकर
जब आप घर पहुँचेंगे
तो अकेले नहीं होंगे
आपके साथ होंगे बहुत से दृश्य बहुत सी आवाज़ें
और सबसे बढ़कर एक सचमुच की थकान
सर भारी होने के बावजूद रात आपको गहरी
निश्चिंत नींद आएगी
१ अप्रैल २००२
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