थोड़ा-सा दर्द
थोड़ा-सा दर्द भुला पाऊँ,
मुझे पंख मिले तो उड़ जाऊँ।
ऊँचे-नीचे, टेढ़े-मेढ़े, जीवन
के रस्ते नाप लिए
काले-गोरे, झूठे-सच्चे, इन्सानों के दिल जाँच लिए।
विचरण आकाश में कर आऊँ
मुझे पंख मिले तो उड़ जाऊँ।
जीवन में सब कुछ मिला मुझे
फिर भी मन कहता थोड़ा है,
ज़्यादा पाने की इच्छा ही
इन्सानी मन का फोड़ा है।
कम-ज़्यादा को बिसरा जाऊँ,
मुझे पंख मिले तो उड़ जाऊँ।
क्षण भर की खुशियों के पीछे
क्यों लगा गमों का मेला है,
यह भीड़ भरा जग है फिर भी,
क्यों हर इन्सान अकेला है।
साथी कोई तो पा जाऊँ,
मुझे पंख मिले तो उड़ जाऊँ।
नन्हें-नन्हें पंछी नभ के
इन्सानों से तो अच्छे हैं
नहीं कभी झगड़ते देखा है,
दिल के भी सीधे-सच्चे हैं।
सच्चापन जरा चुरा लाऊँ,
मुझे पंख मिले तो उड़ जाऊँ। |