साधारण संसार
तुम मुझसे मेरा साधारण संसार न
छीन सकोगे।
प्रेरित हो अनुभूति से मैं गीत
लिखा करता हूँ,
हारों को गले लगाता नहीं जीत लिखा करता हूँ।
अन्तर्मन से ये उठते हुए उद्गार न छीन सकोगे,
तुम मुझसे मेरा साधारण संसार न छीन सकोगे।
भौतिक सुख छीन लिया तो इसका
कैसा गम करना,
इनको संग लेकर अब तक नहीं हुआ किसी का मरना।
अन्तर्मन में जो बहती है सुखधार न छीन सकोगे
तुम मुझसे मेरा साधारण संसार न छीन सकोगे।
दीपक का जलते रहना ही धर्म हुआ
करता है
जल-जल के प्रकाशी करना ही कर्म हुआ करता है।
दीपक से उसके जलने का अधिकार न छीन सकोगे
तुम मुझसे मेरा साधारण संसार न छीन सकोगे।
अपने में मस्त रहा हूँ अपने में
मस्त रहूँगा,
पीड़ाये दो सब मुझको नहीं पीड़ाग्रस्त रहूँगा।
दुख-दर्द को माना सुख का आधार न छीन सकोगे,
तुम मुझसे मेरा साधारण संसार न छीन सकोगे।
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