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अनुभूति में मेहरवान राठौर की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
खंडहर
प्यार करने के लिए
बाज़ार और तुम
मन करता है
 

 

  खंडहर

तिल-तिल कर मरते खंडहर
पल-पल ठोकरें खाते
हवाओं के थपेड़े राहते
कभी बारिश में ढहने का डर
तो कभी बिजली से हुई
बिखरन का शौक सहते,
हर क्षण मजबूर कर देता है उन्हें
टूटने के लिए
कट-कट कर गिरते अंगों को
अपनी आँखों से देखकर
बेहोशी नहीं आती उन्हें
ईंट को पुनः दीवार पर रख देने से
कितने प्रसन्न होते हैं वे
बाँहें खिल जाती हैं उनकी
भविष्य के आसमान में
उड़ने लगते हैं वे
पर खंडहर तो खंडहर हैं,

कब तक रोक पाएँगे हम उन्हें
ज़मींदोज़ होने से
हमें गढ़ने ही पड़ेंगे,
दुनिया के नए अजूबे।

१ जून २००९

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