अनुभूति में
ममता कालिया की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
पापा प्रणाम (दो कविताएँ)
बेटा
माँ
लड़की
वर्कशॉप
छंदमुक्त में-
आज नहीं मैं कल बोलूँगी
किस कदर मासूम होंगे दिन
दीवार पर तस्वीर की तरह
पैंतीस साल
यह जो मैं दरवाज़ा
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लड़की
जैसे-जैसे लड़की बड़ी होती है
उसके सामने दीवार खड़ी होती है। क्रांतिकारी कहते हैं
दीवार तोड़ देनी चाहिए।
पर लड़की समझदार हे और सहनशील।
उसके सामने दीवार खड़ी होती है। क्रांतिकारी कहते हैं
दीवार तोड़ देनी चाहिए।
पर लड़की समझदार है और सहनशील।
वह दीवार पर लगाती है खूँटियाँ, पढ़ाई, लिखाई और रोज़गार की
और एक दिन धीरे से उन पर पाँव धरती
दीवार की दूसरी तरफ़ पहुँच जाती है।
७ सितंबर २००९ |