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छंदमुक्त में-
आज नहीं मैं कल बोलूँगी
किस कदर मासूम होंगे दिन
दीवार पर तस्वीर की तरह
पैंतीस साल
यह जो मैं दरवाज़ा

  आज नहीं मैं कल बोलूँगी

आज नहीं मैं कल बोलूँगी
कच्चे चिठ्ठे तब खोलूँगी।

मैंने कब चाहा था बँधना
बैलों सा नकेल में नथना।
मेरे पैरों में भी गति थी
भावों में साहस, संगति थी।
मन में चिड़िया चह-चह करतीं
हर पतंग के साथ फहरती,
आँखें ऊँचे सपने तकतीं
किरणें मेरी बातें कहतीं
दुखतीं पट्टी कल खोलूँगी
आज नहीं मैं कल बोलूँगी।

आज और दाम्पत्य निभा लूँ
आज और घर बार सँभालूँ
आज और कर लो दो बातें
ले लो और दे दो सौगातें।
सारी सीमा कल तोड़ूँगी
आज नहीं मैं कल बोलूँगी।

जितने मंत्र बोल कर तुमने
मेरा हाथ गहा था
उतने मंत्र विलोम उचारो
तब होगा अलग्योझा
कच्ची चोटें तब खोलूँगी

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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