अनुभूति में
ममता कालिया की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
पापा प्रणाम (दो कविताएँ)
बेटा
माँ
लड़की
वर्कशॉप
छंदमुक्त में-
आज नहीं मैं कल बोलूँगी
किस कदर मासूम होंगे दिन
दीवार पर तस्वीर की तरह
पैंतीस साल
यह जो मैं दरवाज़ा
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दीवार पर तस्वीर
की तरह
दीवार पर तस्वीर की तरह
खामोश नहीं बैठूँगी
फिर फिर लौटूँगी
मैं
तुम्हारे जीवन में
कभी पान की गिलौरी में पड़े पैपरमिंट की तरह
कभी दाल में किरकते कंकर की तरह
कभी कुरते के टूटे बटन से लटक जाएगी
मेरी स्मृति
कभी कुप्पा फूली रोटियों पर चुपड़ जाएगी,
घी की तरह।
जब जब किताबों की धूल भरी कतारों में
ढूँढ़ोगे कोई प्रसंग
तो पाओगे मेरे सन्दर्भ
मेरे बिना
कलम तो तुम ढूँढ़ ही नहीं पाते
लिख क्या पाओगे
मेरे बिना!
जैसे हम शामिल है एक दूसरे के मानचित्र में
नहीं हो सकता कोई और उस तरह!
कहाँ-कहाँ मिटाते फिरोगे रबर से
ज़िन्दगी में पड़े निशान जगह-जगह! |