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लालित्य ललित
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फूल पत्ती और तितली
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साहब और बड़े साहब
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फूल, पत्ती और तितली
दिल की गहराई से
चाहो
फूल को पत्ती को
और फुदकती कूदती तितली को
कुछ देर फूल को
सहलाओ
पत्ती को पुचकारो
देखोगे तुम
आहिस्ता से आ बैठेगी
तुम्हारी हथेली पर तितली
बिल्कुल वैेसे ही
जैसे किसी अनजान अजनबी
बच्चे की ओर
निष्कपट भाव से देखो
मुस्कराओ
तो पाओगे
बच्चा भी तुम्हें उसी भाव से
देखेगा
तो मेरे दोस्त
एक दूसरे को इसी भाव से
देखो
तो कटुता मिट जाएगी
हमेशा-हमेशा के लिए
क्या तुम नहीं चाहते
कि सब मिल जाए
देखो एक माला के एक फूल को
देखो
जो अलग छिटका पड़ा है
उसकी गंध होगी तो
पर वो बात नहीं होगी
जो माला की होती है
तो मानो मेरा कहना !
एकसूत्र में रहो
टूटन में क्या है ?
जुड़ कर रहो
मजाल है तुम्हें कोई
डिगा दे
तुम्हें कोई हिला दें
समूची धरातल पर
दिखने लगेगा असर
और तुम पाओगे तुम्हारे साथ
होंगे सभी लोग
जिन्हें तुम चाहते हो
और सच्चे मन की मुराद
हमेशा पूरी होती है
अगर किसी को भी चाहो
तो निष्कपट चाहो
पूरे मन से चाहो
पूरी शिद्दत से चाहो
देखो तुम्हारे हाथ में भी
आ बैठी हैं तितलियां
देखो तो !
पत्ती भी मुस्कराने लगी है
और फूल भी
अरे समूचा बगीचा ही
मुस्कराने लगा है
गीत खुशी के गाने लगा है
१७ दिसंबर २०१२
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