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गाँव का खत शहर के नाम
फूल पत्ती और तितली
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साहब और बड़े साहब
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गाँव का खत शहर के नाम
उस दिन डाकिया
बारिश में
ले आया था तुम्हारी प्यारी चिट्ठी
उसमें गाँव की सुगन्ध
मेरे और तुम्हारे हाथों की गर्माहट से
मेरे भीतर ज्वालामुखी फूट पड़ा था
सच! ढेर सारी बातें लिख छोड़ी थीं तुमने -
‘‘समय से काम पर जाना
ठीक वक्त पर खाना खाना
और सबसे जरूरी शहरी साँपिनों से दूर रहना
कितना ख्याल रखती हो मेरा
या कहूँ कि अपना।
याद है वह सावन की अलसाई दोपहर -
ब्याह से केवल दो दिन पहले
जब गेंदा ताई के ओसारे में खाए थे
मैंने-तुमने सत्तू और चूरमे के लड्डू
जिन्हें तुम सुबह से ओढ़नी में छिपाए हुए थीं
तुम्हारा खत उनका भी स्वाद दे रहा है
और याद आ गया मुझे बिट्टू के पैदा होने पर
बाँटी थी गाँव भर में मिठाई
मैंने, बप्पा ने, अम्मा ने नाच-नाचकर
मैंने पिछले हफ्ते फैक्टरी में फिर बाँटी थी मिठाई
सँभाल-सँभाल कर
जब मेरा-तुम्हारा बिट्टू हुआ था दस वसंत का
बिमला कैसी है
क्या बापू को याद करती है
बिमला अब तो बड़ी हो गई होगी
ध्यान रखियों शहर की हवा गाँव तक पहुँच चुकी है
लड़की जात है, ताड़ की तरह बढ़ जाती है
तुमने लिखा था पूरन काका भी पूरे हो गए
और हरी नम्बरदार की तेरहवीं चौदस को थी
समय मिला तो
आ जाऊँगा
पर सहर में समय मिलता है क्या ?
वा ‘हरिया’ पिताजी के वक्त आया था
सब कुछ देखना पड़ता है जी।
मेरा भी मन न लगता
मुझको भी कुतुबमीनार देखना है
अब के तुम्हारी एक न सूनूँगी, हाँ...
अच्छा, शहर में अपना ख्याल रखना
ठीक-ठीक काम करना
मालिक लोगों से बनाकर रखना
जन्नत नसीब होती है
गाँव आते वक्त
रेल से मत आइयो
मण्डी टेशन पर बम फटा था
लाली भौजाई कहे थी
लिख दियो, संभल कर आइयो मेरे लिए लाली
पीले रंग का ब्लाउज
बिट्टू के लिए बंडी
बिमला के लिए ओढ़नी और हाँ -
अम्मा के चश्में का नम्बर भेज रही हूँ
बाकी क्या, बस तुम आ जाजो जी,
अच्छा अब सुन लो ध्यान से
‘बाबू’ बन के आइयो
आते वक्त कुर्ता-पाजामा पहन के मत आइयो
यहाँ रोब नहीं पड़ेगा
पिछले महीने कजरी का ‘वो’ भी
गाँव में हीरो बनके आया था
बड़ा अच्छा लगे था
सच, तुम भी पैंट-कमीज और
जूते पहन के आना
वो याद से तिरछी टोपी जरूर लीजो
तू मुझको ‘वा’ में राज दिखे है
अच्छा अब खत बन्द करती हूँ
तुम्हारी पत्नी
जमुना देवी
काली मंदिर के पास
गाँव और पोस्ट आफिस-ढुँढसा
जिला अलीगढ़
उत्तर प्रदेश
१७ दिसंबर २०१२
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