अनुभूति में
लालित्य ललित
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आज की परिभाषा
गाँव का खत शहर के नाम
फूल पत्ती और तितली
यात्राएँ
साहब और बड़े साहब
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आज की परिभाषा
इंसान ने आज गढ़ ली परिभाषा
खुद की
वो बन गया है ‘उत्पाद’
बिक रहा है बाजार में
चाहे आटो एक्सो हो या
किसी नामी कंपनी का
अंडरवियर
उसे अब शरम नहीं
वैसे भी
कोणार्क की मूर्तियाँ हो
या खजुराहो की
क्या फर्क पड़ता है!
संबंधों में ही
कड़वाहट घुल चुकी है
चाय की मिठास भूले लोग
चांदनी चौक से
कतराने लगे है
लेस्बियन/ज़िगलों के
इस जंजाल में
अंतरजाल की चमक में
अपना पड़ोस और
अपनी अहमियत
तलाशते हम गूगल युगीन लोग
उस दिन के इंतजार में है
जब बच्चों के नाम होने लगे
याहू मैसेंजर
ट्विटर या फेसबुक!
नई पीढ़ी की दुल्हनें
ब्याह संग लाने लगेगी
अपने नवजात शिशु
उसे दहेज में मां-बाप देंगे
लेपटॉप, नोट बुक और
अत्याधुनिकतम मोबाइल
एंड्रायड फोन
और हम आप तस्वीरों में टंगे
अपने नौनिहालों की
हरकतों पर
तमाशाबीन बन कर
चुपचाप देखेंगे
इस जुनूनी हलचलों को
जिस पर हमारा कोई वजूद
नहीं चलेगा।
हमारी तस्वीरों पर
उनका हक होगा
वे जब चाहे
किसी को भी ‘टैग’ कर देंगे
कोई ना चाहते हुए भी
हमें लाईक कर देगा
इच्छा हुई तो
कमेंट भी दे देगा
हमारी बला से
और क्या ?
१७ दिसंबर २०१२
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