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यों ही नहीं रोती माँ

यों ही नहीं रोती माँ बेटी जन्मने पर
वज़हें और भी हैं
सिवाय पालने के ह्यबचा कर भेड़ियों सेहृ
वह जानती है कि उसे खून करना होगा
अपनी इच्छाओं और प्रतिभाओं का
प्रतिदिन‚ प्रतिपल
सींकचों के भीतर रहकर . . .
या फिर शायद यह
कि
उसे काटना पड़ेगा
'अस्तित्व' शब्द लिख–लिखकर
अपने ही हृदय में!
क्योंकि उसे मालूम है
कि उसे ये गुर सिखाने नहीं पड़ेंगे
वरन उसकी बेटी सीख लेगी इन गुरों को
दुग्धपान के साथ . . .

उसे डर है यह
कि‚ बांधा जाएगा जब दूसरे खूंटे से
क्या पता हो कसाईखाना!
उसे दीखता नहीं उसका बचपन उसमें
हर वक्त दीखती है‚ अपनी ही कहानी उसमें
हां‚
यों ही नहीं रोती माँ बेटी जन्मने पर
वज़हें और भी हैं
सिवाय पालने के . . .

१६ अक्तूबर २००४
 

 

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