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महसूसता हूँ गर्व
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छंदमुक्त में-
पिघलने के बाद
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राख का ढेर

  महसूसता हूँ गर्व

महानगर के प्लेटफार्म पर
रात को बिछाकर अखबार
मैं सोता हूँ
सुबह जागता हूँ तो
स्वयं को पाता हूँ गुड़ी-मुड़ी सा
और मेरे पाँवों के पास
सोता मिलता है
मुझे एक कुत्ता भी वैसा ही गुड़ी-मुड़ी-सा
जैसा मैं
ए.सी. कोच से उतरते हुए यात्री
जो फीज्डहै तन से भी और मन से भी
देखते हैं हम दोनों को तब
समानता भरी निगाहों से
मुस्कुरा भी देते हैं व्यंग्य से
मैं प्लेटफार्म पर
अखबार पर, कुत्ते के साथ लेटा
पढ़ता हूँ लोगों की निगाहों को
सोचता हूँ
क्या उन लोगों में मेरे साथी के जैसी वफादारी है
और फिर अपने साथी के साथ लेटा
मैं महसूसता हूँ गर्व !

२३ दिसंबर २०१३

 

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