सपने
सपनों को बाँधकर रखने से
पर निकल जाते हैं उसके
उडने को तैयार
हर समय हर पल
ढूँढते रहते हैं कोई छेद
कोई सुराग
परवाह नहीं
कितने बडे ताले हैं
मजबूत कितना है बाहर का किवाड़
गति बहुत तेज है इसकी
ध्वनि से भी ज्यादा
उडते रहते हैं आसमान पर
छा जाते हैं कभी
घने बादलों की तरह
बरस पडते फिर बूँदों की
धारों की शकल में
मिलने को जैसे बेताब हों
सागर से
धरती से
हर बूँद के साथ उठती है
मिट्टी की सोंधी खुशबू
छा जाते फिर वही सब तरफ
मिट्टी हवा खुशबू
एक दूसरे में गलबहियाँ डाले
बुनने लगते हैं ताने बाने
जरा सी आहट पर चौंक जाते हैं सपने
ढूढते हैं छुपने को.. एक नमी युक्त गर्म जगह
देखने वाले देख नहीं पाते
जवाँ होते रहते हैं सपने ।
२ जुलाई २०१२
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